Ganesh Chaturthi Vrat Katha: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘गणेश चतुर्थी’ या ‘गणेश चौथ’ मनाई जाती है। गणेश चतुर्थी व्यापक रूप से संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन व्रत करके गणेश चतुर्थी व्रत कथा या गणेश चतुर्थी की कहानी सुनी जाती है विघ्न विनायक श्री गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है श्री गणेश देवताओं में प्रथम पूजनीय है और बुद्धि के देवता है गणेश जी का वाहन चूहा है और गणेश जी की पत्नियां रिद्धि और सिद्धि है। इनका प्रिय भोग मोदक है।
Ganesh Chaturthi व्रत
गणेश चतुर्थी के दिन प्रात काल स्नानादि करके गणेश जी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करते हैं और दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाते हैं। इनमें से पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देते हैं। गणेश जी की प्रतिमा को उत्तम मुहूर्त में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि व रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न बधाई नष्ट हो जाती हैं।
जो भी लोग गणेश चतुर्थी का व्रत रखते हैं उन्हें गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुननी चाहिए इस दिन गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व माना गया है। जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी का व्रत पूरे विधि विधान से करके गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनता है उसके जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली का आगमन होता है तो आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी व्रत कथा ganesh chauth vrat katha या गणेश चौथ की कहानी ganesh chauth vrat katha.
Ganesh Chaturthi Vrat Katha – गणेश चतुर्थी की कहानी।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा: एक बार महादेव जी भोगावती नदी पर स्नान करने गए उनके चले जाने के बाद पार्वती माता ने अपने तन की मेल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले। उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती माता ने उससे कहा कि एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं किसी को अंदर मत आने देना।
भोगावती पर से स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया शिवजी ने बहुत समझाया पर गणेश जी नहीं माने। इसको शिव जी ने अपना अपमान समझकर उस पर क्रोध किया और त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर के भीतर चले गए। जब माता पार्वती को पता चला कि शिव जी ने गणेश जी का सिर काट दिया है तो वे बहुत कुपित हुई।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha
गणेश जी के मूर्छित होने से पार्वती माता अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने अन्न, जल का त्याग कर दिया। पार्वती जी की नाराजगी दूर करने के लिए शिव जी ने गणेश जी के हाथी का मस्तक लगाकर जीवनदान दिया। तब देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया। यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व ‘गणेश चतुर्थी’ के रूप में मनाई जाती है।
मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन व्रत पालन कर गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुनने अथवा पढ़ने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन मे कष्टों का निवारण होता है। गणेश चतुर्थी व्रत कथा व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और जीवन में सुख समृद्धि लाने वाली बताई गई है।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha
गणेश चतुर्थी व्रत कथा: गणेश चतुर्थी की कहानी 2. Ganesh Chaturthi Vrat Katha
Ganesh Chaturthi Vrat Katha: एक बार महादेव जी पार्वती माता के साथ नर्मदा नदी के तट पर गई। वहां पर सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेव जी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की तब शिवजी ने कहा कि हमारी हार जीत का साथी कौन होगा। पार्वती माता ने वहां की घास के तिनके बटोर कर एक मनुष्य का पुतला बनाकर उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके कहा बेटा हम चौपड खेल रहे हैं। तुम खेल के अंत में हार जीत का फ़ैसला बताना कि कौन जीता कौन हारा।
तब महादेव जी और पार्वती माता चौपड़ खेलने लगे खेल में तीनों बार पार्वती जी जीत गई। अंत में बालक से हार जीत के बारे में पूछा गया तो उसने महादेव जी को विजई बताया। इससे पार्वती माता नाराज हो गई और पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाव से लंगड़ा होकर वहां की कीचड़ में पड़ा रह कर दुख भोगने का श्राप दे दिया। बालक ने विनम्रता पूर्वक कहा मां मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता के कारण ऐसा नहीं किया है आप मुझे क्षमा कीजिए।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha
तब पार्वती जी ने उससे कहा कि यहां नागकन्याऐ गणेश पूजन करने आएंगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे इतना कहकर वह कैलाश पर्वत पर चली गई एक वर्ष बाद वहां श्रावण में नागकन्या गणेश जी का पूजन करने के लिए आई। नाग कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताइ। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्री गणेश जी का व्रत किया।
गणेश जी ने उसे दर्शन देकर कहा मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूं मनवांछित वर मांगो। बालक बोला भगवान मेरे पांव में इतनी शक्ति दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता पिता के पास पहुंच सकूं और वह मुझ पर प्रसन्न हो जाए। गणेश जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया शिवजी ने उससे वहां तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा बालक ने सारी कथा शिव जी को सुना दी।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha
उस दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिव जी से भी विमुख हो गई थी। इसके बाद भगवान शिव शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन तक श्री गणेश जी का व्रत किया जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेव जी से मिलने की इच्छा जागृत हुई। यह शीघ्र कैलाश पर्वत पर पहुंची। वहां पहुंचकर पार्वती जी ने शिवजी से पूछा कि में आप के पास भागी भागी आ गई हूं इसका क्या कारण है। तब शिव जी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कह डाला।
पार्वती माता ने अपने पुत्र कार्तिकेय जी से मिलने की इच्छा से 21 दिन तक 21-21 की संख्या में दुर्वा, पुष्प और लड्डू से गणेश जी का पूजन किया। इक्कीसवे दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वती जी से मिलने आ गए। उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का महत्व सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने भी यही व्रत विश्वामित्र जी को बताया। विश्वामित्र जी ने व्रत करके गणेश जी से जन्म से मुक्त होकर ब्रह्मा ऋषि होने का वर मांगा। गणेश जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha
यह थी गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha) हम आशा करते हैं कि आपको गणेश चतुर्थी व्रत कथा Ganesh Chaturthi Vrat Katha पसंद आई होगी धन्यवाद।